उपभोक्ता अदालतें स्वरुप एवं सम्भावनाएँ – प्रेमलता
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उपभोक्ता अदालतें स्वरुप एवं सम्भावनाएँ
प्रेमलता
अपार सम्भावनाओं से भरा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लगभग एक समानान्तर न्याय व्यवस्था का स्वरूप ग्रहण करता जा रहा है। उपभोक्ता इस क़ानून से अनभिज्ञ नहीं रह गया है तथापि इन अदालतों के स्वरूप, न्याय-प्रक्रिया आदि की विधिवत् जानकारी के लिए अभी अपेक्षित पद्धति विकसित नहीं हो पाई है। कुछ ग़ैर-सरकारी संस्थाएँ इस दिशा में मुखर हैं व इस अधिनियम के दैनंदिन सशक्तीकरण का बहुत श्रेय इन संस्थाओं को जाता है, किन्तु अब स्थिति यह नहीं रही कि केवल जन-जागृति से ही सन्तोष कर लिया जाए। आवश्यकता अब इस बात की भी है कि उपभोक्ता क़ानूनों की शिक्षा भी अब विधिवत् रूप से शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से दी जाए। इस आवश्यकता को सभी स्तरों पर अनुभव किया जा रहा है।
इस पुस्तक के माध्यम से एक छोटा-सा प्रयास किया गया है कि हम उपभोक्ता के पास जा सकें, उन्हें यह सामान्य जानकारी दे सकें कि वास्तव में उपभोक्ता अदालतें हैं क्या? जब हम यह दावा करते हैं कि उपभोक्ता न्यूनतम ख़र्च करके बिना वकीलों के सहयोग के अपनी बात अपनी भाषा में स्वयं इस अदालत में रख सकता है तो उपभोक्ता के लिए पहली आवश्यकता यह जानने की हो जाती है कि कैसे और कहाँ? इन सभी प्रश्नों के समाधान के लिए इस पुस्तक को कैसे और कहाँ से ही प्रारम्भ किया गया है और फिर क्या-क्या, कितने विषय, कैसी शिकायतें—सब जानकारियों को सिलसिलेवार देने का प्रयास किया गया है।
पृष्ठ 151 रु95
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