मैं नास्तिक क्याें हूँ – भगतसिंह
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मैं नास्तिक क्याें हूँ
और ‘ड्रीमलैण्ड’ की भूमिका
भगतसिंह
‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ में भगतसिंह ने सृष्टि के विकास और गति की भौतिकवादी समझ पेश करते हुए उसके पीछे किसी मानवेतर ईश्वरीय सत्ता के अस्तित्व की परिकल्पना को वैज्ञानिक ढंग से निराधार सि( किया है। ‘ड्रीमलैण्ड की भूमिका’ में कृति की समीक्षा करते हुए भगतसिंह ने समाज-व्यवस्था, जीवन, क्रान्ति और भावी समाज के बारे में जो विचार प्रस्तुत किये हैं वे उनकी विकसित हो रही वैज्ञानिक भौतिकवादी दृष्टि का पता देते हैं। साथ ही इसमें उन्होंने अपने से पहले के क्रान्तिकारी आन्दोलन और उसकी विचारधारा की जो समीक्षा की है वह इस बात का स्पष्ट
प्रमाण है कि पुराने क्रान्तिकारी मध्यमवर्गीय आतंकवाद के विचारों से नाता तोड़कर भगतसिंह आगे बढ़ चुके थे।
आज भी नौजवानों में जो तरह-तरह के प्रतिगामी विचार, अवैज्ञानिक दृष्टिकोण, अन्धविश्वास, नियतिवाद आदि व्याप्त हैं, उन्हें देखते हुए भगतसिंह के ये दोनों लेख आज भी बहुत प्रासंगिक हैं। ये लेख हमें भारतीय मुक्तिसंघर्ष के इतिहास में क्रान्तिकारी आन्दोलन और भगतसिंह के बारे में नये सिरे से सोचने के लिए विवश तो करते ही हैं,
क्रान्तिकारी वैज्ञानिक चिन्तन की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रेरित करते हैं।
पृष्ठ 36 रु59
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